जयपुर । राजस्थान हाईकोर्ट ने कैदियों के कल्याण से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की कार्य प्रणाली पर सत नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि गत सुनवाई को राज्य सरकार के अधिकारियों ने उपस्थित होकर पन्द्रह दिन में जेलों के निरीक्षण के लिए नॉन ऑफिशियल विजीटर्स नियुक्त करने का आश्वासन दिया था। इसके बावजूद भी आी तक एनओजी की नियुक्ति नहीं की गई है। इसके साथ ही अदालत ने भारत इलेक्ट्रानिक्स लि. को कहा है कि उनकी ओर से जैमर के लिए बीस करोड़ रुपए लिए गए हैं। इसके बावजूद भी जेल में मोबाइल का उपयोग क्यों नहीं रुक पा रहा है। अदालत ने कहा कि क्यों न उनको दी गई यह राशि वापस वसूल ली जाए। न्यायाधीश मोहमद रफीक और गोरधन बाढ़दार की खंडपीठ ने यह आदेश कैदियों के कल्याण को लेकर लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए।
सुनवाई के दौरान न्यायमित्र अधिवक्ता प्रतीक कासलीवाल ने अदालत को बताया कि गत सुनवाई को गृह विभाग के अधिकारी अदालत में पेश हुए थे। उन्होंने अदालत को आश्वस्त किया था कि एक पखवाड़े में एनओजी की नियुक्ति कर दी जाएगी। इसके बावजूद अब तक नियुक्तियां नहीं हुई है। वहीं जेलों में भी आए दिन मोबाइल मिल रहे हैं। कैदी जेलों में बैठकर मोबाइल के जरिए गैंग चला रहे हैं। जबकि भेल जेमर्स के लिए बीस करोड़ रुपए ले चुका है। वहीं भेल के अधिवक्ता की ओर से मौखिक रूप से अदालत को बताया गया कि जेमर्स की सुचारू व्यवस्था के लिए करीब पचास करोड़ रुपए और चाहिए। इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब जैमर काम ही नहीं कर रहे तो क्यों न उनसे बीस करोड़ रुपए की रिकवरी भी कर ली जाए। इसके साथ ही अदालत ने एनओवी नियुक्त करने के निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 16 मई को तय की है।