आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा 5 जुलाई रविवार को आषाढ़ी पूर्णिमा गुरु पर्व है, इस दिन गुरु से आशीर्वाद लेकर शिक्षा शुभारम्भ करने का उत्तम समय है, इस दिन से सन्यासीयों का चातुर्मास प्रारम्भ होता है ।
अत: गुरुओं के गुरु शनि देव की पूजा-अर्चना करने का उत्तम योग है, भारत की वृष लगन की कुंडली अनुसार शनि देव्, नवम एवं दशम भाव के स्वामी है, तथा केन्द्र एवं त्रिकोण के लक्ष्मी योग कारक हैं, जो वक्री हो कर मकर राशि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विचरण कर रहे हैं। गोचर अनुसार लग्न में शुक्र देव स्वराशि वृष में रोहिणी नक्षत्र में मार्गी, होकर बैठे है, सूर्य देव एवं बुध आद्रा नक्षत्र, राहू मृगशीरा नक्षत्र मिथुन राशि में, चंद्र देव पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, देव गुरु बृहस्पति उतराषाढ़ा नक्षत्र केतु मुल नक्षत्र में धनु राशि में विचरण कर रहे हैं,
जो मिथुन राशि एवं धनु राशि में युति बना रहे हैं, मंगल उतराभाद्रा नक्षत्र मीन राशि में विचरण कर रहे हैं, सूर्य शासक एवं आत्मा का राहू आत्म चिंतन शोध उच्च ख्याति अर्जित करने आकस्मिक लाभ देने का, केतु मोक्ष गुप्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का चन्द्रमा मन का, बृहस्पति आत्मज्ञान चिंतन मांगलिक कार्यो का, शुक्र भोग का मंगल साहस पराक्रम का बुध वाणी ज्ञान का, शनिदेव सन्यास योग आत्म चिंतन गहराईयों में अध्ययन कराने वाला कुशल शासक न्यायाधीश सफल नेतृत्व का कारक है, योग कारक शनि का गोचर में ग्रहों से सम्बन्ध, पुरुषार्थ पराक्रम जनता की दैनिक दिनचर्या से योग बन रहा है।
अत: शनि देव, आत्मज्ञान, मोक्ष के साथ अर्थ लाभ उच्च ख्याति मान सम्मान के योग बनायेंगे। प्राकृतिक आपदाओं एवं विपदाओं से छुटकारा मिलेगा शत्रु परास्त होगें पड़ौसी देशों पर अपना प्रभाव बढ़ेगा।
मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि व्यक्तित्व संचित पुण्य तथा यज्ञ सिद्धि धर्म गुरु व ईश्वर कृपा कर्म मोक्ष प्राप्ति में चन्द्रमा बृहस्पति, केतु का बलवान शनि से गहरा सम्बन्ध होता है, वक्री होने पर सम्बन्ध ओर भी अधिक बलवान हो जाता है, वर्तमान में बुध आद्रा नक्षत्र मिथुन राशि में शनि गुरु उतराषाढ़ा नक्षत्र धनु, मकर राशि में वक्री है राहू व केतु अपनी सौभ्य राशि मिथुन व धनु राशि में वक्री है, इन वक्री ग्रहों का ईश्वर आराधना एवं साधना के लिए उतम योग है, आत्म कारक सूर्य का शनि पुत्र है यधपि पिता पुत्र आपस में वैर भाव रखते हैं, किन्तु शनि साढ़े साती एवं वक्री के समय, शनि अपने पिता का सहायक बन कर जातक को अध्यात्म आत्मा की खोज की और प्रेरित करता है देव गुरु बृहस्पति एवं शनि देव दोनों सूर्य के उतराषाढ़ा नक्षत्र में वक्री होकर विचरण कर रहे हैं, अत: शिष्य द्वारा गुरु से शिक्षा प्राप्त करने का उतम योग है ।
बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि कोरोना वैश्विक महामारी के संक्रमण को ध्यान में रखते हुये ग्रहों के गोचर भ्रमण से इस अवधि में भारत की सभय्ता संस्कृति धर्म ज्ञान शिक्षा में तीव्र विकास, बढ़ते अपराध एवं आतकंवादी घटनाओं पर अंकुश के लिए इस बार गुरु पूर्णिमा पर सभी भक्तजन अपने अपने घरों में रह कर धार्मिक परम्पराओं का पालन कर, पूजा पाठ ध्यान एवं स्तुति करे, यही देश व राष्ट्र के हित में गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा है जो संकट से उभरने का सुलभ उपाय है ।
