भरतपुर (राजेन्द्र जती )। आर्य समाज ही एक ऐसा मंच है जो वेदों की बात करता है। मथुरा से पधारे आचार्य सत्यप्रिय ने कहा कि आर्य समाज ने ही सर्वप्रथम स्वाधीनता
का उदघोष किया। उन्होंने कहा कि हम भक्ति क्येां करें, यज्ञ क्येां करें, किसकी भक्ति करें। डाॅ0 अर्चना प्रियच आर्य ने आर्य समाज का नारी को क्या योगदान दिया इस विषय पर कहा कि आर्य समाज देव दयानंद ने नारियेां को वेद पढने का अधिकार दिया। देव दयानंद द्वारा वर्षों पूर्व भूर्ण हत्या का विरोध किया था जिसको अब सरकार मान रही है। भू्रण हत्या से चार पाप लगते हैं एक दुर्बल को मारने का पाप, अतिथी पाप, शरणागत के साथ विश्वासघात का पाप, खूनी वाला पाप, इन सभी का विस्तृत से विवेचना की। डाॅ. अर्चना प्रिय आर्य ने वतलाया कि लक्ष्मी सब चाहते हैं लेकिन उनके पति विष्णु की मतलव यज्ञ कोई नहीं करना चाहता । यदि यज्ञ करोगे तो विष्णु आयेंगे विष्णु आयेंगे तो लक्ष्मी स्वयं आ जायेगी, प्रथम पारी की अध्यक्षता डाॅ. वेद प्रकाश आर्य बयाना द्वारा की गई। उत्तर प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष व विरजानन्द गुरूकुल आश्रम मथुरा के अधिष्ठाता स्वामी स्वदेश ने कहा कि सारी कुरीतियों की जड संस्कार की कमी है, ऋषियों की पद्धति पर चलें। राष्ट्रीय भजनोपदेशक नरदेव वैनीवाल ने भजन द्वारा सोता देश जगाया, ऋषि दयानंद ने भजन द्वारा देव दयानंद द्वारा उपलब्धियेां का गुणगान किया। कार्यक्रम में अध्यक्ष मोहनदेव शास्त्री चिचाना के कार्यक्रम में स्वामी चेतनानन्द, स्वामी देवानन्द सरस्वती छत्तीसगढ, भावसना आर्य, वीरेन्द्र गुंसारा द्वारा भजन सुनाये गये। मंच संचालन जिला मंत्री सत्यदेव आर्य ने किया।