चौरु कस्बे में धूमधाम से निकाली गई लोक देवता घास भैरु की सवारी

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उनियारा/चौरु। अशोक कुमार सैनी। । उनियारा उपखण्ड क्षेत्र के चौरु कस्बे में मंगलवार को लोक देवता घास भैरू की सवारी निकाली गई मान्यता है कि इनकी सवारी निकालने से क्षेत्र में बीमारियां नहीं फैलती हैं और अच्छी बारिश होती है, जिससे फसलें लहलहाने लगती हैं। लोक

मान्यताओं के अनुसार, बारिश के देवता इंद्र देव प्रसन्न करने के लिए कहीं हल चलाया जाता है तो कहीं यज्ञ और अनुष्ठान किए जाते हैं लेकिन परंपरा के अनुसार में लोक देवता घास भैरू की सवारी निकाली जाती है. माना जाता है कि इससे घास भैरू इंद्र

देव के पास जाकर बारिश करवाते हैं। घास भैरू की सवारी मंगलवार 7-00 बजे रात को घास भैरव की सवारी निकाली गई। इस दौरान बालाजी मंदिर व कंकाली माता मंदिर से रवाना होते हुए देलवाल परिसर में मुख्य रोड से होते वापिस बालाजी मंदिर के पास गांव पैरों की सवारी पहुंच जाती है की सवारी निकालते हुए बस जो कस्बे के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरती हुईं अपने गन्तव्य पहुँचकर सम्पन्न हुई.

सवारी के दौरान युवा घास भैरू को आसन पर विराजमान कर रस्सियों पर जोर लगाते और जयकारे लगाते नजर आए. सवारी घरों के सामने से गुजरी तो लोगों ने अगरबत्ती जलाकर और तेल, प्रसाद आदि अर्पण कर पूजा की.

इस मौके पर ग्रामीण अपने घरो में बीमारियों से बचाव के लिए मिटटी दरवाजों पर लगाते नजर आए वहीं मिली जानकारी के अनुसार ग्राम वासियों ने बताया कि अच्छी बरसात और मौसमी बीमारियों की रोकथाम के लिए मंगलवार को घास भेरू की सवारी चौरु कस्बे में धूमधाम से निकाली गई।

युवक युवतियां मंगल गीत गाते हुए चल रहे थे। वहीं जगह-जगह नारियल और प्रसाद चढ़ाकर घास भेरू जी की पूजा अर्चना की कई के बाद बार-बार घास भेरू जी मचले तो उनकी विशेष पूजा धार चढ़ाई गई।

शोभा यात्रा का लोगों ने जगह-जगह स्वागत किया। क्षेत्र में अच्छी बारिश और मौसमी बीमारियों की रोकथाम के लिए पुराने समय से ही गांव में घास भेरू जी की सवारी निकाली जाती है। इस सवारी में पूरा गांव मौजूद रहता है और घास भेरू को पूरे गांव में घुमाया जाता है।

मान्यता ये है कि घास भेरू को पूरे गांव की सीमा में घूमते है और ये सवारी जहां से शुरू होती है, वहीं पर आकर समाप्त होती है। जिसके चलते पूरे गांव में एक ओरा बन जाता है। जिससे कि मौसमी बीमारियों की रोकथाम हो, साथ ही क्षेत्र में अच्छी बारिश हो । घास भैरु की सवारी निकाली गई है। 

बरसों से चली आ रही है परंपरा :

सारे गांव वाले मिलकर निकालते हैं घांस भेरु की सवारी घास भैरू निकालने की परंपरा गांव में ही नहीं राजस्थान में वर्षों से चली आ रही है। जब राजस्थान में राजाओं का शासन था तब से गांव में खुशहाली और बीमारियों से रक्षा के लिए घास भेरू की सवारी निकाली जाती थी।

उसके लिए गांव में जगह जगह मंदिरों के बाहर औषधी मेखला बांधी जाती थी। घास भेरू की सवारी जब इन मेखलाओं के नीचे से गुजरती थी तो उसके पीछे सारे गांव के लोग भी गुजरते थ।े इन मेखलाओ में विभिन्न जड़ी बूटियों और आयुर्वेदिक वृक्षों की पत्तियों को बांधा जाता था।

जिसके नीचे गुजारने से कई मौसमी रोग ठीक हो जाया करते थे। कहा जाता था कि गांव के चारों ओर इस तरह कि मेखला बांधने से कोई भी महामारी गांव में नहीं आती थी। घास भैरू एक बड़ा सा पत्थर का बना होता है जिसके ऊपर कामी पाठा लगाया होता है।

इसे लकड़ी के टुकड़ों पर सवार कर सारे गांव वाले अपने बेलों के साथ या फिर ग्रामवासी द्वारा इसे खींचते हुए गांव के एक छोर से दूसरे छोर पर ले जाते हैं। अगले वर्ष उस छोर से पुनः इस छोर पर लाते हैं। गांव के बाहर घास भेरू की विशेष पूजा अर्चना की जाती है सारे गांव वाले इस पर शराब चढ़ाते हैं माना जाता है कि घास भैरू गांव की प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से रक्षा करता है।

चौरु ग्राम वासियों का कहना है कि : घास भैरुं की सवारी निकालने से क्षेत्र में बीमारियां नहीं फैलती और अच्छी बारिश होती है और फसलें लहलहाने लगती है. सावन के माह में जब बादल बरसने से मना करने लगते हैं तब हाड़ौती के लोग घास भैरू की सवारी निकाल कर उनसे अच्छी बारिश की कामना करते हैं।

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