न्याय देने वाली महिला जज भटक रही है न्याय के लिए , यह कैसा संविधान और किस तरह की न्याय प्रणाली ?

Dr. CHETAN THATHERA
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जयपुर / चेतन ठठेरा । प्रजा का न्याय करने वाली न्यायाधिपति आज स्वयं न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाते खटखटाते थक गई हैं । जहां एक तरफ सरकार ने महिला आरक्षण बिल को लेकर मोहर लगाई हैं वहीं और दूसरी देश की दो महिला जज न्याय के लिए स्वयं भटक रही है।

इनमें से एक महिला जज ने तो परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट से इच्छा मृत्यु मांगी है और दूसरी महिला जज एफ.आई .आर दर्ज करने के लिए तक गिड़गिड़ा रही है और तो और न्याय प्रणाली पर आवाज उठाने को लेकर उसे नौकरी से ही बर्खास्त कर दिया गया है और वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा भटक रही है।

क्या यही है महिलाओं के प्रति देश में सम्मान ? क्या यही है महिलाओं के प्रति आरक्षण ? देश में घटित यह तीन दिन में दो घटनाओं ने ऐसे कई सवाल सरकार पर समाज पर और न्याय पालिका विचार के बिंदु पर ला खड़ा कर दिया है।

उत्तर प्रदेश की एक महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु मांगी बांदा जिले में सिविल न्यायाधीश के पद पर तैनात महिला जज का आरोप है कि बाराबंकी में सिविल जज रहते हुए।

जिला न्यायाधीश ने उसका यौन उत्पीड़न किया और इस संबंध में उसने बार-बार शिकायत और गुहार अपने उच्च अधिकारियों को की लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि जिला न्यायाधीश ने उनसे रात में मिलने की कहा। कार्रवाई नहीं होने पर डेढ़ साल से परेशान इस महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश से इच्छा मृत्यु मांगी जिसका एक पत्र सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुआ।

अभी इस घटना का निपटारा भी नहीं हुआ कि राजस्थान के नागौर जिले में तैनात रही महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट एलिजा गुप्ता लोगों को न्याय देती थी वह आज न्याय के लिए भटक रही है यहां तक की एक इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी ने उनकी एफआईआर तक दर्ज नही की ।

राजस्थान सरकार व हाई कोर्ट को अपनी पीड़ा की शिकायत करने पर महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट का तबादला करने के साथ साथ ही नौकरी से तक बर्खास्त कर दिया गया हैं । इसको लेकर उसने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है हद तो तब हो गई जब एक महिला जज अपनी एफआईआर दर्ज करने के लिए इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी के सामने रोने तक लग गई।

एलिजा गुप्ता सितंबर 2023 में एसीजेएम प्रथम के रूप में नागौर में तैनात हुई थी और वह तब से ही इस पद पर कार्य कर रही थी इस कोर्ट में रहते हुए ही महिला जज ने वहां के एडवोकेट पीर मोहम्मद और अर्जुन रामकला पर महिला जज ने धमकियां देने प्रताड़ित करने जैसे कई गंभीर आरोप लगाए महिला जज का कहना है कि उन्होंने एडवोकेट पीर मोहम्मद के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया था ।

क्योंकी उन्होंने मुझे गाली देते समय मेरी नियुक्ति अथॉरिटी गवर्नर ऑफ राजस्थान को गाली दी थी और उन्हें पागल कहा था इस घटना को लेकर काफी विवाद हुआ और उसने इस संबंध में मौखिक और बाद में लिखित शिकायत संबंधित थाना अधिकारी को दी लेकिन उसके बाद भी उस पर कार्रवाई नहीं हुई और यहां तक कि उनकी रिपोर्ट पर एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई उल्टा उसका तबादला कर दिया गया और उसे रातों-रात बुलाकर रिलिव करने के साथ ही जब ज्वाइन करने गई तो उसे नौकरी से तक बर्खास्त कर दिया गया है।

महिला जज का आरोप है कि यह सब वकीलों के दखल और हाई कोर्ट के एक जज के दखल के कारण हुआ है। महिला जज ने आरोप लगाया की हाईकोर्ट के जज ने तो उन्हें बाकायदा व्हाट्सएप पर कॉल करके वकीलों से उलझने के मामले में दूर रहने की बात कही थी ऐसा महिला जज का आरोप है हालांकि दूसरी और वकीलों का कहना है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है उल्टा वकीलों का आरोप है कि महिला जज एलिजा गुप्ता अधिवक्ता न्याय मांगने के लिए जाते हैं तो वह उनसे गलत तरीके से उनका अपमान करती है कलंकित भाषा का इस्तेमाल करना और डायस पर बैठकर न्याय सुचिता के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाया हालांकि अभी सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच करेगी। लेकिन आश्चर्य की एक बात है कि संबंधित थाने में एक महिला जज की लिखित शिकायत पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की।

एक तरफ राज्य सरकार यह कहती है कि थाने में आने वाले हर परिवादी की प्राथमिकी (एफआईआर)दर्ज हो और जांच हो लेकिन दूसरी ओर महिला जज एलिजा गुप्ता की रिपोर्ट पर एफआईआर दर्ज नहीं होना पुलिस की कथनी और करनी को दर्शा रहा है ? हालांकि इस मामले में हकीकत क्या है यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा और जांच का विषय है।

परंतु सवाल यह उठता है कि देश में महिलाएं कहां सुरक्षित है? इन दोनों घटनाक्रमों से एक बात सामने आ रही है की जो महिलाएं न्याय के आसन पर बैठी हैं और लोगों का न्याय करती है आज वहीं महिलाएं प्रताड़ित हैं और न्याय के लिए भटक रही है? तो फिर आम महिला कंहा सुरक्षित होगी।

क्या इन दोनों महिलाओं की घटना क्या देश के संविधान पर प्रश्न चिन्ह नहीं है? क्या देश की न्यायपालिका पर सवाल खडे नहीं है ? क्या देश के कानून पर प्रश्न चिह्न नहीं है ? क्या देश को कलंकित नहीं कर रही है यह घटनाएं ??

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम