भीलवाड़ा / चेतन ठठेरा । किसी भी टीम में टीम का कप्तान मजबूत हो लेकिन खिलाड़ी कमजोर हो सामान में नहीं हो भावना नहीं हो तो टीम के हारने की संभावना बन जाती है ऐसे ही कुछ स्थिति भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस की नजर आ रही है।
भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर मतदान को लेकर अब मात्र चार दिन शेष बचे हैं और इस सीट पर कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरे के रूप में राजनीति के दिग्गजक चतुर खिलाड़ी डॉक्टर सीपी जोशी को मांन मनुहार के बाद मैदान में उतारा है
। डॉ जोशी की राजनीतिक कौशल पकड़ और कार्य क्षमता के बारे में जग जाहिर है और भाजपा ने उनके सामने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के कर्मठ तथा भाजपा संगठन के मजबूत खिलाड़ी दामोदर अग्रवाल को मैदान में उतारा है राजनीतिक कौशलता में डॉक्टर जोशी अग्रवाल पर वैसे तो भारी पड़ते हैं ।

भीलवाड़ा में कांग्रेस ने भले ही नाथद्वारा से जोशी को फिर 10 साल बाद भीलवाड़ा बेचकर प्रत्याशी बनाया है चलो जोशी को भागीरथ की उपाधि जरूर दी जा रही है और यह सही भी है लेकिन जोशी के साथ एक तो बाहरी प्रत्याशी होने का ठप्पा लगा हुआ है उसी के साथ भीलवाड़ा में वर्तमान परिस्थितियों में 10 साल पहले जैसे हालात नहीं है और कांग्रेस में जो टीम 10 साल पहले उनके साथ चुनाव में काम एकजुटता से कर रही थी वह अब नजर नहीं आ रहा है ।

हालांकि कांग्रेस के जिले के शीर्ष नेता अपने-अपने क्षेत्र में उनके साथ बाहरी रूप से दिखाई दे रहे हैं और नजर आ रहे हैं लेकिन वास्तविक रूप में मन से समर्पण का अभाव आज तक नजर आ रहा है हालांकि कांग्रेस जातिगत आधार पर भी अपनी रणनीति बना रही है स्वयं प्रत्याशी ब्राह्मण होने से ब्राह्मण कार्ड खेला जा रहा है क्योंकि भीलवाड़ा में ब्राह्मण मतदाता की संख्या सर्वाधिक है ऐसे में ब्राह्मण मतदाताओं को जाति कथा आधार पर अपने पक्ष में करने की कोशिश है तो दूसरी ओर जाट समुदाय को भी अपने पक्ष में करने के लिए दो स्टार जाट नेता हनुमान बेनीवाल और राहुल कस्बा को भी भीलवाड़ा बुलाकर जातिगत समीकरण साधने की प्रयास है जाति का समीकरण कितने सार्थक होते हैं यह तो मतदान और मतगणना के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा ।
लेकिन इसे यूं कहां जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भीलवाड़ा जिले में वर्तमान में हालात एक टीम में दमदार कप्तान होने के बाद भी खिलाड़ियों में समान में और खिलाड़ियों का कमजोर होना जैसा नजर आ रहा है ।
इधर दूसरी ओर भाजपा में भी हालांकि इस बार जमकर गुटबाजी हावी है और भीतरघात होने की आशंका मंडरा रही है । ऐसी स्थिति में इस बार भीलवाड़ा लोकसभा सीट्स का चुनाव परिणाम बाद ही चौकाने वाला होगा और यह एक बात तो स्पष्ट नजर आ रही है कि 2019 की चुनाव परिणाम की पुनरावृति इस बार नहीं होगी तथा
जीत का कोई रिकॉर्ड नहीं बनेगा और हार जीत का अंतर सिमट कर एक लाख से डेढ़ लाख तक रह जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं हालांकि चुनाव में कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है क्योंकि मतदान से कुछ घंटे पहले तक भी स्थितियां बदलती रहती हैं।