दिल्ली / देश ही नहीं दुनिया में जन-जन की आस्था का केंद्र बन चुके अयोध्या के रामलला मंदिर मे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर जीरे और सवाल खड़े किए जा रहे हैं और इस प्राण प्रतिष्ठा को धर्म शास्त्रों के अनुसार गलत बताया जा रहा है।
लेकिन यह कितना सही है और इसकी सच्चाई क्या है आखिर विरोध क्यों किया जा रहा है और प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शास्त्र सम्मत है या नहीं इस बारे में कुछ ज्योतिष विद्वानो और शास्त्रियों तथा धाम गुरुओं के अनुसार उनका क्या तर्क है आईए जानते हैं।
देवमन्दिर की प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है
सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर तथा मन्दिर में कुछ काम शेष रहने पर भी जहाँ पर सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर देवप्रतिष्ठा होती है वहाँ गर्भगृह में देवप्रतिष्ठा होने पर मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा संन्यासी के द्वारा की जाती है। कलशप्रतिष्ठा गृहस्थ के द्वारा नहीं होती। गृहस्थ के द्वारा कलशप्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है।
मन्दिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर देवप्रतिष्ठा के साथ मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा होती है। जहाँ पर मन्दिर पूर्ण नहीं बना रहता वहाँ देवप्रतिष्ठा के बाद मन्दिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभदिन में उत्तम मुहूर्त में मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा होती है।
अतएव वैदिक-मूर्धन्य श्री अण्णाशास्त्री वारे द्वारा निर्मित ‘कर्मकाण्ड प्रदीप’ ग्रन्थ में पत्र 338 में
इति व्रतोद्यापन-वद्द्व्यहःसाध्यः सर्वदेवप्रतिष्ठाप्रयोगः समाप्तः” के बाद “अथ कलशारोपणविधिः” से आरम्भ कर “इति प्रतिष्ठासारदीपिकोक्त: कलशारोपणविधिः” तक स्वतन्त्र रूप से कलशारोपणविधि दी गयी है।
पाञ्चरात्रागम में ईश्वरसंहिता का अग्रिमवचन भी उक्त व्यवस्था के विरुद्ध नहीं है। वचन इसप्रकार है:
“प्रासादाङ्गेषु विप्रेन्द्राः! क्रमान्निगहितेषु च। देवताधारभूतेषु यद्यदऊंग् न कल्पितम् ॥ यत्र वा तत्तदधिकं तत्रापि च समाचरेत् । तत्तत्स्थाने तु बुद्ध्या तु देवतान्यासमूहतः ॥” (ईश्वरसंहिता अध्याय 3 श्लोक 165-166 पृष्ठ 32)
बृहन्नारदीयपुराण में कहा है:
“अकृत्वा वास्तुपूजां यः प्रविशेन्नवमन्दिरम् । रोगान् नानाविधान् केशानश्नुते सर्वसङ्कटम् ॥ अकपाटमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम् । गृहं न प्रविशेदेवं विपदामाकरं हि तत्॥” (बृहन्नारदीय पुराण, पूर्वखण्ड, अध्याय 56 श्लोक 618-619, पत्र 116)
तदनुसार मन्दिर में द्वार (कपाट = किवार) जबतक नहीं बनता तथा मन्दिर पर जबतक आच्छादन नहीं होता अर्थात् मन्दिर जबतक नहीं ढका जाता और वहाँ वास्तुशान्ति जबतक नहीं होती तथा उसमें देवताओं को यथायोग्य माषभक्त बलि एवं पायसबलि नहीं दी जाती तथा वास्तुशान्ति का अङ्गभूत ब्राह्मणभोजन जबतक नहीं होता तबतक मन्दिर में देवप्रतिष्ठा नहीं हो सकती।
लोकव्यवहार में एक मंजिल (भवन) बनने पर भी वास्तु-शान्ति करके लोग गृहप्रवेश करते हैं। बाद में गृह का ऊपरी भाग बनता है। अत: पूर्ण भवन बनने पर ही वास्तु प्रवेश होगा ऐसा नहीं कहा जा सकता। देवमन्दिर देवगृह है, अतः उसमें उक्त नियम लागू होगा।
अयोध्या के राममन्दिर में प्रतिष्ठा के पूर्व वास्तुशान्ति, प्रस्तुत बलिदान एवं ब्राह्मणभोजन होने वाला है। मन्दिर के दरवाजे लग गये हैं। गर्भगृह पूर्ण रूप से शिलाओं द्वारा ढका गया है। अत: उसमें रामप्रतिष्ठा करने में कोई दोष नहीं है। मन्दिर का काम पूर्ण होने पर कर्मकाण्ड प्रदीप में उद्धृत प्रतिष्ठासार दीपिकोक्त कलशारोपणविधि के अनुसार कलशारोपण होगा।
22 जनवरी ही मुहूर्त क्यो ?
22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल द्वादशी सोमवार मृगशीर्ष नक्षत्र के दिन सर्वोत्तम मुहूर्त है इसकारण उसे लिया गया।
22 जनवरी 2024 के पूर्व विजयादशमी के दिन गुण – वत्तर लग्न नहीं मिलता। गुरु वक्री होने से दुर्बल है।
बलि प्रतिपदा को मंगलवार है। यह वार गृहप्रदेश में निषिद्ध है। अनूराधानक्षत्र में घटचक्र की शुद्धि नहीं है। अग्निबाण भी है। अग्निबाण में मन्दिर में मूर्तिप्रतिष्ठा होने पर आग लगकर हानि होती है।
25 जनवरी 2024 पौष शुक्ल पूर्णिमा को मृत्युबाण है। मृत्युबाण में प्रतिष्ठा होने पर लोगों की मृत्यु हो सकती है।
माघ फाल्गुन में कहीं बाण शुद्धि नहीं मिलती तो कहीं पक्षशुद्धि नहीं मिलती तथा कहीं तिथ्यादि की शुद्धि नहीं मिलती। भाष शुक्ल आदि में गुरु कर्काश (उच्चांश) का नहीं है।
14 मार्च 2024 से खरमास है। अर्थात् मीनार्क है। मीनार्क में उत्तर भारत में प्रतिष्ठादि शुभ कार्य नहीं होते।
9 अप्रैल 2024 को वर्षारम्भ दिन है। उसमें मङ्गलवार, वैधृति एवं क्षीणचन्द्र दोष हैं।
रामनवमी 17 अप्रैल 2024 को मेषलग्न पापाक्रान्त है तथा उसे लेने पर द्वादश में बुध-शुक्र जाते हैं। वृषलग्न लेने द्वादश में गुरु एवं चतुर्थेश सूर्य जाते हैं। बाद में आश्लेषा नक्षत्र है।
24 अप्रैल वैशाखकृष्ण प्रतिपदा को मृत्युबाण है।
28 अप्रैल को शुक्र का वार्धक्यारम्भ है।
5 मई को गुरु का वार्धक्यारम्भ है।
7 जुलाई 2024 रथयात्रा के दिन रविवार है।
17 जुलाई से चातुर्मास्य है।
12 अक्टूबर 2024 विजयादशमी को शनिवार है। गुरु वक्री है।
2 नवम्बर बलिप्रतिपदा को शनिवार है। गुरु वक्री है।
3 फरवरी तक गुरु वक्री होने से मुहूर्त में गुरुबल नहीं ।
माघ शुक्ल दशमी शुक्रवार को शुद्ध एवं बलवत्तर लग्न नहीं मिलता।
माघ शुक्ल त्रयोदशी सोमवार 10 फरवरी 2025 को अग्निबाण है। पुनर्वसूनक्षत्र पापाक्रान्त है।
आगे कहीं चन्द्रशुद्धि नहीं। कहीं पक्ष की शुद्धि नहीं। कहीं शुद्ध नक्षत्र नहीं। कहीं बाणशुद्धि नहीं। कहीं तिथि-वार की शुद्धि नहीं।
फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च को खरमासारम्भ।
30 मार्च 2025 को वर्षारम्भ के दिन रविवार।
रामनवमी के दिन रविवार।
आगे कहीं यतीपात, कहीं वैधृति, कहीं इतर अशुद्धि।
गुरु शत्रुराशि में होने से मुहूर्त में गुरुबाण की कमी।
2 जून 2026 को गुरु कर्क में जायेगा। उस समय अधिक जयेष्ठ कृष्णपक्ष रहेगा।
16 जून 2026 से शुद्ध ज्येष्ठ शुक्ल प्रारंभ होगा। पूर्ण लग्नशुद्धि नहीं मिलती।
तब तब तक प्रतीक्षा कर शुद्ध मुहूर्त को खोजने चलने पर कौन रहेगा? कौन नहीं रहेगा जानकार विद्वान्?
अत: इन सब बातों का विचार करके 22 जनवरी 2024 का राम प्रतिष्ठा मुहूर्त दिया गया है।
पूर्व में आनन-फानन में जो मुहूर्त लोगों ने दिया उसमें कुछ कमी थी इसी कारण मन्दिर तोड़े गये। इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी 2024 को प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है।
इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पश्चम, सप्तम एवं नवम पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य हो जाने से पौषमास का वर्ज्यत्व (दोष) समाप्त हो जाता है। भगवान् की कृपा से, गुरुजनों के आशीर्वाद से उपर्युक्त उत्तम मुहूर्त मिला है।
अधकचरे लोगों द्वारा बिना प्रमाण के प्रश्न उपस्थापित एवं प्रचारित किये जाते हैं उनमें कोई तत्व नहीं है । यह तर्क उत्तर प्रदेश के वाराणसी रामघाट के गणेश्वरशास्त्री द्राविड परीक्षाधिकारी मंत्री श्रीगीर्वाण वाग्वर्धिनीसभासाङ्वेद विद्यालय के है