साहित्य समाज का दर्पण नहीं अपितु निर्माता है- डॉ. रवीन्द्र शुक्ल

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बारां /फ़िरोज़ ख़ान। हिन्दी साहित्य भारती के केन्द्रीय अध्यक्ष व उप्र के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण नहीं अपितु समाज का निर्माता है। हमारा साहित्य संस्कारित और सामर्थ्यवान हो, जो हमारे धर्म, राष्ट्र, भाषा और संस्कृति की रक्षा व संपोषित कर सके।

डॉ. शुक्ल ने यह उद्गार हिन्दी साहित्य भारती की ओर से रविवार को सार्वजनिक संस्था धर्मादा धर्मशाला में आयोजित प्रदेश कार्यकारिणी बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश व जिले के सदस्यों के सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति हमारी जड़ें हैं, जिनसे कट कर हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। संस्कृति पर आघात का सामना क्षमा और अहिंसा के अनुसरण से करना घातक है। संस्कृति को प्रतिष्ठित कर ही विश्व कल्याण की ओर अग्रसर हो सकते हैं। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश अध्यक्ष जगदीश सोनी ने कहा कि हिन्दी हमारा गौरव है और इसे राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाना हमारी प्राथमिकता है। इसकी पताका सम्पूर्ण समाज को एक सूत्र में बांधने में सक्षम है। विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय महामंत्री व पूर्व आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष आनंद गर्ग, संस्था धर्मादा के अध्यक्ष राधेश्याम गर्ग, केन्द्रीय उपाध्यक्ष सीताराम मीणा व संरक्षक मनीष लश्करी थे। जिलाध्यक्ष सरोज दीक्षित सहित संगठन के सदस्यों ने अतिथियों का राजस्थानी परम्परा से स्वागत किया। संचालन सुनील शर्मा ने किया।

जनसंचार संयोजक प्रद्युम्न गौतम ने बताया कि चार सत्रों में आयोजित बैठक में केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ. शुक्ल ने वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य परमानन्द को हिन्दी साहित्य भारती सम्मान से सम्मानित किया गया। वहीं जिला कार्यकारिणी को पदभार की शपथ ग्रहण करवाई। सत्रों को केंद्रीय मार्गदर्शक जीतेन्द्र निर्मोही, केंद्रीय मीडिया संयोजक गौरीकान्त शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष गिरिराज गुप्ता, प्रदेश महामन्त्री डॉ. शिवशंकर सोनी, प्रदेश मार्गदर्शक कृष्ण बिहारी भारती, प्रदेश संयुक्त महामंत्री पुरुषोत्तम माहेश्वरी व संजय शुक्ला, प्रदेश कोषाध्यक्ष प्रशान्त टेहल्यानी, प्रदेश सदस्य दयाल परमार, श्रीमती आशा कंवर, जिला संरक्षक प्रमोद शर्मा सहित अन्य वक्ताओं ने सम्बोधित किया। बैठक में प्रदेशभर से बड़ी संख्या में सदस्यों ने भाग लिए हुए हिन्दी भाषा के प्रसार को लेकर विविध बिंदुओं पर मंथन किया और भावी कार्ययोजना का निर्धारण किया।

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