भीलवाड़ा। लोकसभा चुनाव में मतदान को लेकर अब मात्र 10 दिन बचे हैं लेकिन चुनाव की रंगत अभी भी फिकी नजर आ रही है भाजपा में जंहा आंतरिक फुटबाजी है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में चौकड़ी की चाल और कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव नजर आ रहा है। ऐसे में कैसे होगी नैया पार क्या रहेगा चुनाव परिणाम।
कांग्रेस ने 10 साल बाद एक बार फिर दिग्गज नेता डॉ सीपी जोशी को बड़ी मुश्किल से तैयार कर चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन इस बार चुनाव मैदान में जो उत्साह और उमंग और जोश जोशी के 10 साल पहले चुनाव में नजर आ रहा था वह इस बार ने तो पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में है और न हीं स्वयं प्रत्याशी में यह जोश नजर आ रहा है ।

हालांकि डॉक्टर सीपी जोशी कुशल राजनीतिज्ञ है और विकास की योजनाएं कैसे बनाना और उसे क्रियान्वत किस तरह से करना उन्हें बखूबी भी आता है । परंतु चुनाव मैदान में प्रबंधन की कमान इस बार स्थानीय नेताओं के हाथ में नहीं होने से कार्यकर्ताओं में जोश नजर नहीं आता है क्योंकि चुनाव प्रबंधन की कमान उनकी टीम ने अपने हाथ में ले रखी है और इसका नेतृत्व कर रहे हैं ।

भीलवाड़ा जिले के ही मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले और उनके निजी सचिव । उनकी टीम की कमी कहे या अपरिपक्वता की जिले के ग्रामीण क्षेत्र के नेताओं और कार्यकर्ताओं का प्रत्याशी जोशी के बीच में पूरी तरह से संवाद व समन्वय तक नहीं है कि वह सीधे प्रत्याशी से मिल सके यहां तक की मीडिया मैनेजमेंट भी यही टीम देख रही है जो गिने चुने में ही घिरी हुई है ।
विदित है की विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा विधानसभा सीट से डॉक्टर जोशी के चुनाव प्रबंधन की कमान भी इसी टीम ने ही संभाल रखी थी और नतीजा क्या रहा ।
यह सर्वविदित है जबकि विधानसभा चुनाव में तो प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा हावी नहीं था जितना इस बार लोकसभा चुनाव में केंद्र में अबकी बार फिर मोदी की सरकार 400 पार का नगाड़ा बज रहा है ऐसे में आकलन किया जा सकता है कि डॉ जोशी कैसे नैया पार कर पाएंगे?
दूसरी और भाजपा में विधानसभा चुनाव से शुरू हुई आंतरिक गुटबाजी और यहां तक की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा का ही दूसरा रूप माना जाता है या यूं कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा एक दूसरे के पूरक हैं और अब से पहले कभी भी भीलवाड़ा में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुटबाजी नजर नहीं आई थी ।
लेकिन विधानसभा चुनाव से यह सिलसिला शुरू हुआ जो अभी भी लोकसभा चुनाव में देखने को मिला और इस आतंरिक गुटबाजी के बीच में दामोदर अग्रवाल फस गए हैं ? लेकिन ऐनवक्त पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और संघ की एक लाइन के संदेश पर सब एक होकर चुनावी रण को जीतने में लग जाते हैं ।
ऐसा अब तक देखने में आया है और इस बार भी ऐसा ही होने की संभावना है और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार की लहर दामोदर अग्रवाल की नैया पार कर सकती है ?