जयपुर/ कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव में नेतृत्व और चेहरा सामने नहीं रख चुनाव लड़ने की बात जरूर कही है लेकिन दिल्ली की बैठक के 5 दिन बाद आलाकमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के घुर विरोधी पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की भूमिका तय करने के साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से निर्णय ले लिया है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ही नेतृत्व में लडा जाएगा और वही कांग्रेस का चेहरा होंगे ।
अगर इसे यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चाणक्य राजनीति एक बार फिर सामने आ गई है और गहलोत की चाणक्य राजनीति के आगे कांग्रेस का आलाकमान भी असहाय हो चुका है ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच राजस्थान में पिछले 4 साल से चल रहे हो वर्चस्व की लड़ाई हालांकि स्पष्ट तौर पर तो आंतरिक रुप से अभी समाप्त नहीं हुई है ? लेकिन दिल्ली में 7 जुलाई को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खडगे , राहुल गांधी के सी वेणुगोपाल और राजस्थान के 30 से अधिक मंत्री और विधायकों की मौजूदगी में हुई।
बैठक के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के सी वेणुगोपाल और स्वयं सचिन पायलट ने मीडिया में बयान दिया था कि एक होकर चुनाव लड़ा जाएगा और इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया था कि सचिन पायलट की भूमिका का फैसला आलाकमान पर छोड़ा है ।
विशेष सूत्रों के अनुसार आलाकमान ने सचिन पायलट की भूमिका का फैसला कर लिया है और पायलट को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मालिका अर्जुन खड़के की राष्ट्रीय टीम में लिया जाकर उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाने का निर्णय लिया है तथा पायलट को किसी बड़े राज्य के प्रभारी की कमान भी सौंपी जाएगी।
राजस्थान के चुनाव में पायलट की सीधी भूमिका नहीं होगी परंतु राजस्थान में उनके वर्चस्व और प्रभाव को देखते हुए उनके प्रभाव वाली विधानसभा सीटों पर प्रचार प्रसार के लिए सचिन पायलट को भेजा जाएगा।
सूत्रो के अनुसार राजस्थान के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की सीधी भूमिका नहीं रहेगी और नहीं कोई जिम्मेदारी होगी परंतु टिकट के वितरण में पायलट की राय को भी प्राथमिकता दी जाएगी और पायलट समर्थकों को भी टिकट वितरण में स्थान दिया जाएगा तथा पायलट के प्रभाव वाली विधानसभा सीटें जिनकी संख्या करीब 45 से 50 के करीब है इन क्षेत्रों में पायलट की सहमति से ही टिकट दिए जाएंगे ।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व आलाकमान के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ाई जाएगा और उनकी योजनाओं को ही प्रमुखता से मुद्दा बनाकर मैदान में कॉन्ग्रेस उतरेगी और गहलोत के अलावा कोई अन्य चेहरा नहीं होगा ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता चाणक्य नीति और जादूगरी के बूते पर एक बार फिर साबित कर दिया कि राजस्थान में उनके रहते हुए और उनके बिना अपना वर्चस्व बनाई नहीं रख सकती