सीपी जोशी या पूनिया बन सकते हैं भाजपा के अध्यक्ष

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जयपुर
मदनलाल सैनी के निधन के बाद प्रदेश भाजपा में अध्यक्ष की कुर्सी खाली हो गई है। अब पार्टी कार्यकर्ताओं में नए प्रदेशाध्यक्ष को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। संभावना है कि पार्टी आलाकमान जल्द ही इस पद पर किसी की नियुक्ति कर देगा तथा नवम्बर-दिसम्बर में होने वाले संगठन चुनावों में चुनावी प्रक्रिया के तहत प्रदेशाध्यक्ष का निर्वाचन हो जाएगा। माना जा रहा है कि भाजपा का नया प्रदेशाध्यक्ष भी संघ पृष्ठïभूमि का ही होगा। ऐसे में किसी विधायक या सांसद को इस पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
प्रदेशाध्यक्ष पद की दौड में सबसे आगे नाम विधायक सतीश पूनिया और सांसद सी.पी. जोशी का चल रहा है। इसमें पूनिया संगठन में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं और हाल ही में उन्हें सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। इसके अलावा चित्तौड सांसद सीपी जोशी भी दो बार सांसद और युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं और पार्टी में युवा नेता के रूप में उनकी पहचान है। इसके अलावा पूनिया और जोशी दोनों ही जमीन से जुडे नेता माने जाते है और संघ पृष्ठïभूमि से भी है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार जिस प्रकार केन्द्र में गजेन्द्र सिंह को केन्द्रीय मंत्री और ओम बिडला को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया है, उसके अनुसार प्रदेशाध्यक्ष पद पर भी कोई चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है। केन्द्रीय नेताओं की पसंद के अनुसार किसी मौजूदा या पूर्व सांसद को इस पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसके अलावा वरिष्ठï विधायक पर भी भरोसा जताया जा सकता है। ऐेसे में मदन दिलावर और वासुदेव देवनानी का भी नाम आगे हैं। ये दोनों ही संघ निष्ठï माने जाते हैं। एक कयास यह भी है कि इस पद पर किसी महिला को बैठाया जा सकता है। इसमें किरण माहेश्वरी का नाम आगे है।
गत वर्ष 16 अप्रैल को तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर पार्टी में विवाद की स्थिति बन गई थी। राष्टï्रीय अध्यक्ष अमित शाह गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन सत्ता के एक धडे ने इसका विरोध कर दिया। इसको लेकर कई बार विरोधी धडे ने दिल्ली मेंं शक्ति प्रदर्शन भी किया। इसके कारण करीब ढाई माह बाद आलाकमान ने बीच का रास्ता निकालते हुए मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया था।
इस बार पार्टी में किसी भी नियुक्ति को लेकर विवाद की आशंका कम है। इसके पीछे तर्क है कि पिछली बार शेखावत का विरोध करने वाला धडा सत्ता से जुडा हुआ था और राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण मजबूत स्थिति में था। साथ ही उसी वर्ष विधानसभा चुनाव भी होने थे, ऐसे में राष्टï्रीय नेतृत्व भी उस धडे के दवाब में आ गया लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई है
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