जयपुर
लोकसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में कई दिग्गजों की राजनीति अब नई करवट लेती दिख रही है। इसी क्रम में जहां कई समाज कांग्रेस से टूटे हैं वही कई परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले समाजो की नई लीडरशिप तैयार हो रही है, परंतु वर्षों तक पार्टी का आधार रहे मीणा वोट बैंक में बिखराव देखने को मिल रहा है।
पिछले 1 महीने के घटनाक्रम से लग रहा है कि कांग्रेस के मीणा विधायक सरकार से बहुत ज्यादा नाराज है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परसादी लाल और रमेश मीणा को मंत्री बनाकर समाज को साधने की कोशिश की है किंतु कुछ महत्वाकांक्षी विधायक पार्टी की जड़ें खोद रहे हैं।
बात करें 1 माह पूर्व हुए थानागाजी दुष्कर्म मामले की तो यहां सामने आया कि पीड़िता को न्याय दिलाने की पहल स्थानीय विधायक कांति मीणा ने शुरू की। वे ही पीड़ित परिवार को लेकर अलवर एसपी के पास गए थे।
इसके बाद भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। पुलिस ने 2 दिन बाद मुकदमा दर्ज किया। ऐसे ही हाल टोंक जिले के नगरफोर्ट में पुलिस से मुठभेड़ में मारे गए भजन लाल मीणा के मामले में देखने को मिला। यहां कांग्रेस के विधायक और पूर्व डीजीपी हरीश मीणा अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए। उनका साथ देने जहाजपुर विधायक गोपीचंद मीणा भी आ गए। इतना ही नहीं धरने पर बैठे हुए हरीश मीणा की बयान बाजी से लगता है कि वे सरकार से बहुत ज्यादा असंतुष्ट है।
हालांकि सरकार ने तुरंत मामले पर कार्रवाई करते हुए रमेश मीणा को आगे किया और रमेश मीणा ने भी लोगों के बीच मौके पर पहुंचकर सरकार की ओर से समझौता किया। लेकिन इसके अगले दिन ही फिर से हरीश मीणा के धरने पर बैठने तथा उसी दिन पायलट की समझाइश पर धरना समाप्त करने के कदम ने कई सवाल उठा दिए हैं। माना जा रहा है की हरीश मीणा और सचिन पायलट के बीच कोई राजनीतिक समझौता हुआ है