Tonk news / dainik reporters : अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन एवं जनसरोकार मंच (Azeem Premji Foundation and Jansarokar Manch) द्वारा कहानीकार अशोक आत्रेय (Storyteller Ashok Atreya) की कहानियों पर विमर्श (Discussion on the stories ) का आयोजन किया गया।
अशोक आत्रेय (Ashok Atreya) अपनी कहानियों के माध्यम से मनुष्य के एकाकी होते जाने और बेचारगी की नियति के प्रश्न उठाते हुए हमें मानवीय-अनुभवों की लगभग अस्तित्वादी-संचेतना की सीमा-रेखा तक खींच ले जाते हैं।
यहॉं पारिवारिक-अलगाव,अवसाद,अकेलेपन,एकान्तिक,घुटन, कुंठा जैसे सामाजिक और वैयक्तिक मनोवेगों को गहारा गद्यात्मक निर्वहन है, जहॉं आधुनिक-जीवन की पहचानहीनता और उसकी अस्मिता पर मंडराते कई संकट साथ साथ पाठक के सामने मूर्तमान होते हैं।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार हेमंत शेष (Litterateur Hemant Sesha) ने कहा कि अशोक आत्रेय की कहानियां अपने समाज और समय के बाज़ार से लुभावने,किन्तु स्थूल प्ररेणा-न्नेत्र नहीं खोजतीं,बल्कि अपने भीतर उतर क रवह अपने मन के अंधेरों को, अलझनों- ऊहापोह,अपमानों और संकटों को टटोलती हैं।
यहॉं कहानी किसी भी एक छोटे से महत्वहीन दृष्य,किसी आवाज, किसी के यों ही बोले गए एक वाक्य, से शुरू हो सकती जिसे लेेखक कहानी के तौर पर अपने लिए आरभ्भ बिन्दु मान कर उसे कभी तात्विक-निष्कृति, या कभी अनिर्णय के पशोपेष की तरह ’पूर्ण’ हो या खत्म की जाये- ऐसी कोई बाध्यता भी यहॉं नहीं है। उनकी कुछ कहानियां अस्तित्तवादी दर्षन से उपजी पष्चिमी लेखन-धारा ’स्ट्रीम ऑफ कॉन्शसनैस’ के हिंदुस्तानी- संस्करण जैसी कही जा सकती हैं।
समकालीन मनुष्य के एकाकीपन पर हमारे सामाजिक-विज्ञानों में जो चिंताए व्यक्त की गयी हैं, बहुत कुछ उसी तरह इनकी कुछ कहानियां भी उसी भाव-भूमि का साहित्यक-रूपायन हैं। आदमी की मानसिक उलझनों, तनाव और अजनबीपन(एलिनिएषन) का यह कथा-भाष्य है, उसका गल्प-आख्यान!
अलग-अलग काल-खण्डों में लिखी ये कहानियां हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से इन में षिल्प,भाषा, कथानक और शैली आदि की विविधता है। कहानी पर चर्चा करते हुये सुमन साहब ने कहा कि बालक कहानी वास्तविक समस्याओं की और हमारे ध्यान खींचती हैं बहुत ही जीवन्त कहानी हैं।
हनुमान प्रसाद बोहरा(Hanuman Prasad Bohra) ने कहा ये ये कहानियों हमें सामाजिक विषयों पर सोचने की अलग दृष्टि प्रदान करती हैं। अच्युत ठाकूर ने कहा कहानियों में आमजीवन की समस्याओं को उभारना चाहिए कहानी बौद्धिक विमर्ष के लिए नहीं होनी चाहिए।
साबिर हसन रहीस (Sabir Hasan Rahis) ने कहा ये वर्तमान दौर की कहानियां जो हमें अमूर्त में सोचने को बाध्य करती हैं। अषोक सक्सेना ने कहा ये वर्तमान युग में फ्युजन की कहानियां हैं। इस कार्यक्रम लोकेश चावला, हंसराज तंवर पी0डी आजाद, साईन अफरोज, पत्रकार असलम, गजेन्द्र शर्मा, अरशद शाईन, मनोज तिवारी, मोईन हिना,आबिद शाह, चिरंजीलाल चावला, देवेन्द्र, राजेन्द्र, लोकेष चावला, राजकुमार आदि लोगों ने प्रतिभाग किया।