जयपुर/डाॅ.चेतन ठठेरा ।कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणामों में राजस्थान सहित पांच राज्यों में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के लिए संदेश दिया है ।
कर्नाटक के चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया है कि किसी एक चेहरे को लेकर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता और नहीं जीता जा सकता है तथा राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दे ही चुनाव में मायने रखते हैं ।
इन चुनाव परिणामों ने जहां केंद्र में भाजपा की आंखें खोल दी है और राजस्थान में अब भाजपा को सत्ता में आना है तो है वसुंधरा राजे को दरकिनार नहीं कर सकते तथा कांग्रेस को अगर सत्ता में बने रहना है तो गहलोत और पायलट को एक होना होगा तथा कमजोर पड़े संगठन को मजबूत करना पड़ेगा ।
कर्नाटक में हुई कांग्रेस की जीत के बाद कांग्रेस के नेता काफी उमंग से भरे हुए हैं जिनमें राजस्थान के नेता भी शामिल हैं लेकिन राजस्थान में वर्तमान जो हालात कांग्रेस में चल रहे हैं वह जगजाहिर है।
2018 में सत्ता में आने के बाद से ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सत्ता की कुर्सी को लेकर युद्ध शुरू हो गया था जो 2020 में विस्फोट के रूप में सामने आया और तब से लेकर अब तक लगातार दोनों ही और से सार्वजनिक तौर पर और सार्वजनिक मंचों पर हमले जारी हैं यहां तक कि दोनों ही नेताओं के समर्थक भी एक दूसरे के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं।
जबकि गहलोत सरकार के मंत्री ही कई बार कई मौकों पर कई मुद्दों पर अपनी ही सरकार और अपनी सरकार के मंत्रियों को निशाने पर ले चुके हैं और ले रहे हैं ऐसे में आने वाली 6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नैया पार पाना बहुत ही मुश्किल है ? और कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अब कांग्रेस आलाकमान का पूरा ध्यान राजस्थान पर केंद्रित होगा और कांग्रेस आलाकमान की सबसे बड़ी चुनौती है।
गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही इस वर्चस्व की लड़ाई को समाप्त कर एक दूसरे को मिलाना कर्नाटक में सिद्धा रमैया को डीके शिवकुमार ने मिलकर चुनाव लड़ा तभी ही कांग्रेस वहां अपना परचम पहरा सकी
राजस्थान व कर्नाटक की स्थितियां मिलती जुलती
कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा की सरकार में हुए भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस ने मुद्दा बनाया और पूरे चुनाव के दौरान 40% कमीशन के आरोप को बनाए रखा और छोड़ा नहीं और इसका यही कारण राज्य सत्ता विरोधी लहर को हवा मिली और जनता को भाजपा के खिलाफ नाराजगी बढ़ती गई और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई जबकि राजस्थान में इससे बिल्कुल उल्टा है ।
यहां कांग्रेस की सरकार है और भाजपा विपक्ष में है तथा भाजपा राजस्थान में लगातार कांग्रेस की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और राजस्थान लोक सेवा आयोग के पेपर लीक जैसे मुद्दे को लेकर हमलावर बनी हुई है और राजस्थान में भी कर्नाटक की तरह ही हर 5 साल में सत्ता बदलने का प्रचलन है ।
जिस तरह कर्नाटक में इस प्रचलन को अर्थात इतिहास को दोहराया गया इसी तरह राजस्थान में भी इसकी संभावनाएं अधिक है और सत्ता विरोधी लहर के कारण पूर्व भी राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस सत्ता से बाहर होना पड़ा था ।
राजस्थान मे कांग्रेस सगंठन निष्क्रिय
कर्नाटक में कांग्रेस का प्रदेश संगठन काफी मजबूत था जबकि राजस्थान में इसके एकदम उल्टा विपरीत है यहां संगठन पूरी तरह से निष्क्रिय सा है स्थितियां तो यह है कि कई जिलों में सरकार के साडे 4 साल बीत जाने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जिला अध्यक्षों की नियुक्ति तक नहीं कर पाए हैं कांग्रेस को अगर सत्ता में वापस सी करनी है तो माइक्रो लेवल पर संगठन को सक्रिय करना पड़ेगा।
अगर इनकी अनदेखी की तो..
कर्नाटक में भाजपा की हार के प्रमुख कारणों में एक सबसे बड़ा कारण भी यह रहा कि यहां पार्टी के जनाधार और अनुभव रखने वाले नेताओं को चुनाव के दौरान दरकिनार कर दिया गया था तथा उनके और उनके समर्थकों के टिकट काट दिए गए थे जो भारी पड़ा। राजस्थान में भी वर्तमान में हालात कुछ ऐसे ही हैं और अगर भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होना है तो जनाधार वाले नेताओं की अनदेखी से बचना होगा अब यहां भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे के जनाधार को अनदेखी नहीं कर सकता अगर अनदेखी की तो फिर भाजपा यहां सत्ता में नहीं लौट सकेगी और इसी तरह कांग्रेस ने भी सचिन पायलट की अनदेखी की तो सरकार सत्ता में वापसी करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा और फिर सत्ता विरोधी लहर भी काम करेगी ।